गांव के लोग भी बिना डरे उस वृक्ष के नीचे जाने लगे।
"गुड़-गुड़ दी एनेक्सी दी वेध्याना दी मूंग दी दाल ऑफ़ दी पाकिस्तान एंड हिंदुस्तान ऑफ़ दी दुर्र फिट्टे मुंह......!"
धीरे-धीरे वहां से लोगों ने कूड़ा फेंकना बंद कर दिया, और इतनी खूबसूरत पेंटिंग दीवार पर थी कि कोई अब वहां खड़े होकर पेशाब भी नहीं करता था। देखते ही देखते वह रास्ता साफ हो गया था।
मोरल – विषम परिस्थितियों में भी अपने स्वभाव को नहीं बदलना चाहिए।
उसकी मां अपने लंबे से सूंढ़ में लपेट कर चिंटू को जमीन पर ले आती है।
The narrative weaves collectively the life of various figures, reflecting the special tapestry of Varanasi, with the ghats alongside the Ganges to your narrow lanes pulsating with town’s history. Using a combination of humour, satire, and social commentary, Kashi Ka Assi
काफी देर भटकने के बाद उसे जोर से भूख और प्यास लगी।
कालिया ने शेरू को रोटी खाता हुआ देख जोर से झटका और रोटी लेकर भाग गया।
चूहे ने एक बार फिर कनान को मेंढक से बचाया और उसे एक जादुई पेड़ के पास ले गया जिसकी शाखाएँ नीले आकाश तक पहुंचती थीं । वापस गुफा में, जब बाघ ने देखा कि कानन गायब है, तो वह बहुत क्रोधित हुआ। आकाश में “का संगी ” नाम की एक देवी ने कनान को आश्रय दिया। दूसरी ओर का संगी को मेंढक की जादुई खाल के बारे में पता चला और उसने उसे जला दिया। जादूगर मेंढक का संगी से लड़ने के लिए आकाश में आया।
Through this Hindi fiction e book, Munshi Premchand supplies a vivid and reasonable portrayal of rural everyday living, providing audience a glimpse in the intricate Net of human emotions and societal constructions in early 20th-century India. The novel stands for a timeless typical, Discovering the themes of morality, sacrifice, and the quest for dignity amidst a backdrop of agrarian struggles.
अमूल अमेरिकी दूध बाज़ार पर पकड़ बनाने के लिए कर रहा ये कोशिश
जंगल में सुंदर-सुंदर हिरण रहा करते थे। उसमें एक सुरीली नाम की हिरनी थी। more info उसकी बेटी मृगनैनी अभी पांच महीने की थी। मृगनैनी अपनी मां के साथ जंगल में घूमा करती थी।
विमला खाना परोस रही थी। कमल बैठा पत्र लिख रहा था। वह सोचता था कि जब इसे समाप्त कर लूँगा, तब उठूँगा। देर ही क्या है, कुछ भी तो और अधिक नहीं लिखना है। बस, यही दो-तीन, हाँ दो ही पंक्तियाँ और लिखने को हैं कि फिर मैं हूँ और भोजन। और विमला मन-ही-मन झुँझला भगवतीप्रसाद वाजपेयी
सिद्धेश्वरी ने खाना बनाने के बाद चूल्हे को बुझा दिया और दोनों घुटनों के बीच सिर रखकर शायद पैर की उँगलियाँ या ज़मीन पर चलते चीटें-चींटियों को देखने लगी। अचानक उसे मालूम हुआ कि बहुत देर से उसे प्यास लगी हैं। वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा-भर पानी अमरकांत